12th फेल फिल्म से हम क्या सीखे,क्या जाने
लेखक- संजय दुबे
साहित्य समाज का दर्पण है ये बात तब मानी जाती थी जब आम लोगो के पास खाली समय को व्यतीत करने के लिए साधन के रूप में केवल पुस्तके हुआ करती थी। ये दौर टेलीविजन के आने के पहले तक स्थापित था। फिल्मे भी साहित्य को पीछे नही कर पाई थी क्योंकि उधार या किराए से किताबे लेकर पढ़ी जा सकती थी,वाचनालय जाकर भी अध्ययन भी साहित्य का अर्जन किया जा सकता था लेकिन पहले टेलीविजन और बाद में मोबाइल ने पुस्तको की दुनियां को समेट कर रख दिया। आज के दौर में गैजेट्स आ गए है, यू ट्यूब है , गूगल है इनमे सुनने का भी विकल्प है लेकिन कितने केवल विद्यालय और महाविद्यालय तक ही सिमट कर रह गई है। बदलाव का दौर है तो बदलाव ही सही। इतनी बाते लिखने का मकसद ये था कि किताबो के प्रति घटता आकर्षण एक युग का अंत भी है।
2019में एक पुस्तक न्यू लिट पब्लिकेशन प्रकाशित की थी "ट्वेल्थ फेल" लेखक थे अनुराग पाठक, ग्वालियर से हिंदी में एम ए और पीएचडी है।सिर्फ एक कहानी संग्रह लिखी थी "व्हाट्स एप पर क्रांति"दूसरी बार उपन्यास लिखे ट्वेल्थ फेल। ये पुस्तक जीवनी है एक आईपीएस अफसर मनोज कुमार शर्मा की, जो वर्तमान में महाराष्ट्र में अतिरिक्त पुलिस आयुक्त के रूप में कार्यरत है। मनोज शर्मा यूपीएससी के अंतिम अवसर में भारतीय पुलिस सेवा के लिए चयनित हुए। 9वी 10वी में थर्ड डिवीजन , 11वी में चिट मारकर उत्तीर्ण हुए। 12वी की परीक्षा में चिट मार नही पाए सो हिंदी छोड़ बाकी विषयो में फेल हो गए। एक एस डी एम के कारण ऐसा हुआ था सो मनोज कुमार शर्मा को अहसास हुआ कि प्रशासन में कितना दम होता है। एक औसत विद्यार्थी से मेधावी शासकीय सेवक बनने के बीच गरीबी, संघर्ष , मेहनत और सफलता को विधु विनोद चोपड़ा ने फिल्मांकन किया तो अनुराग पाठक की पुस्तक की बिक्री भी बढ़ गई। विक्रांत मैसी जो कभी बुद्धू बक्सा के कलाकार होते थे वे फिलहाल बड़े कलाकार हो गए है लेकिन फिल्मों में उनका संघर्ष भी मनोज कुमार शर्मा जैसा है। 14साल में बड़े परदे पर बड़े हो गए है।
आज साहित्य के अलावा कुछ फिल्मे भी समाज का दर्पण है पिछले कई सालों में ऐसी फिल्मे आई है जो मनोरंजन और अर्थ संचय से परे जिंदगी को झकझोड़ती है। ये फिल्मे बायोपिक ज्यादा रही है चाहे वह दंगल हो या भाग मिल्खा भाग हो या सुपर 30 या छिछोरे हो। समाज विधु विनोद चोपड़ा और राकेश ओम प्रकाश मेहरा सहित नितेश तिवारी का आभारी है जिन्होंने जीवन के विपरीत आती आंधियों से दो चार हाथ करने का जुनून दिया। इसके साथ आज के अभिभावकों को चेतवानी भी है कि आपके बच्चे आपके टैग नहीं है। उन पर अपनी उम्मीदों का पहाड़ मत रखिए। हर कोई डॉक्टर इंजिनियर नहीं बन सकता, नही बनना भी चाहिए लेकिन उन्हें NIT, JEE, UPSC के लिए बेबस न करे। We need to tackle the disease and not to just the symptoms. it's time to not just restart,but rethink.what can be possibly be more valuable then the precious life aburuptly cut short only because acadmic failure and shame seem worse then death
यदि आपने 12th फेल फिल्म नहीं देखा है,तो शायद आप एक बेहतरीन फिल्म से मशरूफ है,जरूर देखिए और आंकलन करे कि सब संभव है,जुनून चाहिए बस
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