जीत का जश्न और हम लोग

लेखक - संजय दुबे

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 29जून को बीते पांच दिनों तक भारत के विश्व चैंपियन बनने का जश्न अधूरा सा लग रहा था।इसका कारण था कि विजयी टीम का पदार्पण देश में नहीं हुआ था। बारबाडोस में दक्षिण अफ्रीका को सात रन से हराने के बाद देश वासियों की खुशी सातवे आसमान पर थी। कमी थी जीत दर्ज करने वाले कप्तान रोहित शर्मा और उनके टीम के अन्य खिलाड़ियों की जिन्होंने हार के जबड़े से जीत को निकाल कर लाया था।

 भारतीय विमान सेवा एयर इंडिया ने उड़ान भरी और तूफान में फंसे विजयी खिलाड़ियों को लेकर देश की सरजमी पर उतर गया।

 जीत का जश्न कैसा हो सकता है इसे हमने सबसे पहले 1971में देखा था जब अजीत वाडेकर की टीम ने वेस्ट इंडीज और इंग्लैंड को उनकी सरजमी पर हराया था। हमने जीत के जश्न को उन्माद में बदलते देखा था जब 1983में लार्ड्स के मैदान में कपीलदेव ने दो बार के विश्व विजेता वेस्ट इंडीज को हराकर वन डे में विश्व विजेता बने थे। हमने जीत के रंग को 1985में बदलते हुए देखा था जब सुनील गावस्कर की टीम ने बेंसन एंड हेजेस कप जीता था। हमने जीत की ऊंचाइयों को छुआ था जब 2007में श्री संत ने पाकिस्तान के आक्रामक बल्लेबाज मिस्बाह का कैच पकड़ा था और भारत का नाम पहले टी 20विजेता के रूप में दर्ज हो गया। ये जीत एम एस धोनी के दिमागी कप्तानी का नतीजा था। 2011में जीत का हम चरमोत्कर्ष देखा जब एम एस धोनी ने लांग आन के ऊपर छक्का लगाकर देखते रहे और जैसे ही बॉल सीमा रेखा के बाहर गई ।भारत विश्व विजेता के पायदान में खड़ा हो गया।

1971,1983,1985,2007 और2011के बीच और बाद में दो अवसर ऐसे आए थे जिसमे सौरव गांगुली और रोहित शर्मा भारत को मौका दे सकते थे लेकिन दोनो ही बार ऑस्ट्रेलिया दीवार बन कर खड़ा हुआ और जीत रेत के समान हाथो से सरक गई। 2003में सौरव गांगुली और 2023में रोहित शर्मा के लिए जीत का बदले मिले हार के चलते खिलाड़ियों के आंसू बहे तो देश का भी गला रूंधा, देश सुबका, और रोया भी।

2024का टी 20आयोजन में भारत के खिलाड़ी 2023के वनडे आयोजन के समान ही अपराजित बढ़े थे।फाइनल में पहुंचे तो मनोवैज्ञानिक रूप में दबाने वाला ऑस्ट्रेलिया नही था बल्कि दक्षिण अफ्रीका था, ये टीम भी अपराजित थी। फाइनल में एक को जीत मिलना था, भारत को मौका मिला और दक्षिण अफ्रीका ने मौका खोया, बस यही अंतर रहा अन्यथा जिस तरह से क्लासेन खेल रहे थे ऐसा लग रहा था कि मैच अठारहवें ओवर में खत्म हो जाएगा लेकिन हर बॉल में मैच पलटता है ये हमने देखा और हार के जबड़े से जीत को निकाला तो बुमराह ने, हार्दिक ने, अर्शदीप ने और मास्टर क्लास कैच पकड़ने वाले सूर्य कुमार यादव ने। विराट अक्षर और शिवम दुबे के सहयोग से बने रन के पहाड़ पर दक्षिण अफ्रीका के बल्लेबाज चढ़ नही पाए और जीत सात कदम दूर रह गई। भारत टी 20 में दोबारा विजेता बना और खुशी की लहर बारबाडोस के मैदान से निकल कर देश के मकानों, गलियों, मोहल्लो, चौक चौराहों में पसर गई। लाखो तिरंगे रात के साए में लहराए, देश भक्ति के गाने गूंजे, जिसे जैसे नाचना आता था वैसा नाचा, खुशी का ठिकाना नहीं होना इसी को कहते है। दिवाली से ज्यादा फटाके फूटे। हर भारतीय जीत की खुशी से रोया भी मुस्कुराया भी हंसा भी और खिलखिलाया भी,

 हमारी भावनाओं का सैलाब तब उमड़ा जब भारतीय टीम को लेकर आने वाला विमान दिल्ली में उतरा मुंबई में उतरा। विमान के रन वे से हमारे देश ने जीत का जश्न मनाना शुरू किया। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने घर बुलाकर विजेताओं की पीठ थपथपाई तो मुंबई में विमान को मार्च ऑफ परेड ऑनर मिला। तिरंगा लिए तीन जीप के पीछे विमान चल कर रुका। विमान को पानी के बौछार से भींगा कर भव्य स्वागत किया गया। मुंबई वैसे भी रोहित शर्मा के घर होने के अलावा देश के क्रिकेट की नर्सरी है।स्वाभाविक था कि एयरपोर्ट से लेकर वानखेड़े स्टेडियम के बीच के मरीन ड्राइव मार्ग पर उत्साह का सैलाब और उमंग का समुंदर दिखना ही था। एक तरफ समुंदर की लहरे उठ रही थी तो दूसरी तरफ जीत का दर्प देखने लायक था। हर चश्मदीद हाथ में तिरंगा लिए,पोस्टर लिए, अपने महानायको को देख पा रहा था। खिलाड़ियों को ये तो विश्वास था कि देश पलक पावड़े बिछाएगा लेकिन इसकी सीमा क्या होगी ये तब समझे जब उन्होंने देश वासियों के प्रतिनिधि के रूप में मुंबई के लोगो का जन सैलाब देखा। अभिभूत होना स्वाभाविक था । रही सही कर वानखेड़े स्टेडियम में निकला। ऐसा स्वागत कि लगा कि विश्व विजेता केवल टीम ही नहीं है बल्कि देश का हर नागरिक है। रोहित शर्मा और टीम के सभी खिलाड़ियों का आभार है जिन्होंने गर्व से ये कहने का अवसर हमे दिया कि यहां के हम सिकंदर


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