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पुनिया 28 को आ सकते हैं रायपुर, निगम-मंडलों की सूची पर होगी चर्चा
रायपुर - कांग्रेस कार्यकर्ताओं का लंबा इंतजार अब खत्म होते नजर आ रहा है। 28 नवम्बर को प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया रायपुर आ सकते हैं।उनके प्रवास के दौरान निगम- मंडलों की सूची को अंतिम रुप देने की पहल की जाएगी। साथ ही संगठन विस्तार को लेकर भी चर्चा होगी। माना जा रहा है कि दिसम्बर में संघर्ष के दिनों में कांग्रेस का साथ देने वाले सक्रिय कार्यकर्ताओं को बढ़ा तोहफा मिल सकता है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी इस बात के संकेत दिए है,जल्द ही निगम-मंडलों की सूची जारी होगी। कांग्रेस सरकार के गठन को दो साल से अधिक समय हो गए हैं, लेकिन निगम-मंडलों और आयोग में अब तक नियुक्ति नहीं हो सकी है। इसे लेकर कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में निराशा है। हालांकि कांग्रेस रणनीतिकारों का कहना है, देरी सोची-समझी रणनीति के तहत की गई है, ताकि कांग्रेस कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों में असंतोष न बढ़े। दरअसल, निगम-मंडलों की पहली बड़ी सूची लोकसभा और नगरीय निकायों के चुनाव के बाद जारी की गई थी। दूसरी सूची के लिए मुख्यमंत्री निवास पर एक दौर की बैठक हो चुकी थी। इस बीच प्रदेश प्रभारी पुनिया को कोरोना हो गया। इसके ठीक बाद बिहार चुनाव और मरवाही उप चुनाव आ गया। इस वजह से सूची जारी करने में थोड़ी देरी ज्यादा हो गई है। फूटेगा असंतोष का गुबार सत्ता में अनुशासन का डंडा मजबूती से चलता है। इसके बाद भी कांग्रेस में कई मामलों में खुलकर असंतोष सामने आया है। खासकर नगरीय निकायों में एल्डरमैनों की नियुक्ति, बाल महिला समिति के गठन और जेल संदर्शक सूची को लेकर सामने आया है।एल्डरमैन की नियुक्ति जकांछ से कांग्रेस से आए एक कार्यकर्ता को एल्डरमैन बनाया दिया। वहीं अन्य स्थानों पर भाजपा समर्थित विचारधारा के लोगों की नियुक्ति की खबर सामने आई है।इसे लेकर कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों में आक्रोश दिखाई दे रहा है। पुनिया के सामने कार्यकर्ताओं का असंतोष भी खुलकर सामने आ सकता है। देखने मिलेगी वर्चस्व की लड़ाई माना जा रहा है, निगम-मंडलों की दूसरी सूची में वर्चस्व की लड़ाई देखने को मिल सकती है। पहली सूची में मुख्यमंत्री के ज्यादा सहयोगियों को जगह नहीं मिल सकी थी।एक तरह से सत्ता और संगठन के बीच तालमेल बैठाने का पूरा प्रयास किया गया था। इसके अलावा क्षेत्रीय और जातिगत समीकरण के आधार पर कई लोगों के नाम कट गए थे। माना जा रहा है कि इस सूची में भी सत्ता और संगठन के बीच तालमेल बैठाने का प्रयास रहेगा। यदि ऐसा होता है, तो संघर्ष के दिनों में मुख्यमंत्री बेहद करीबी लोगों को निगम-मंडलों की कुर्सी मिल सकती है।
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