बंगाल की सत्ता में राजनीति का "खेला"

भाजपा की 'चाणक्य नीति' पर भारी ममता का 'चंडी पाठ'

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पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी)और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपनी-अपनी जीत के लिए पूरी ताकत झोंक दी। रविवार दोपहर के मतगणना रुझानों में टीएमसी बंगाल की सत्ता में एक बार फिर बहुमत के साथ वापसी करती नजर आ रही है। वहीं भाजपा सौ सीटों के अंदर ही सिमटती दिख रही है।भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह तक बड़े-बड़े नेताओं की "चाणक्य नीति" पर ममता बनर्जी का 'चंडी पाठ' कैसे भारी पड़ गया।

पश्चिम बंगाल ममता बनर्जी का गढ़ है। पिछले 10 सालों से वे बंगाल में एकछत्र राज करती रहीं। इस दौरान बंगाल में कोई उन्हें चुनौती नहीं दे सका। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में नतीजों ने ममता के लिए खतरे की घंटी बजा दी थी। लोकसभा में 18 सीटें जीतकर भाजपा ताकतवर प्रतिद्वंदी के तौर पर उभरी। साथ ही अपनी आक्रामक रणनीति से भाजपा ने दीदी की नाक में दम भी कर दिया।

ममता बनाम मोदी - जनता पर चला दीदी का जादू 

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव इस मोदी बनाम ममता बन गया था। एक ओर जहां भारतीय जनता पार्टी ने कई बड़े नेताओं समेत केंद्रीय मंत्रियों पर दांव लगाया। वहीं चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर पीएम मोदी गृह मंत्री शाह,यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ तक कई बड़े नेताओं को मैदान में उतार दिया। भाजपा ने बंगाल पर जीत हासिल करने के लिए धारदार रणनीति बनाई थी।

विपक्ष का सबसे बड़ा चेहरा बनीं ममता बनर्जी 

इसके इतर,पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का जनता पर जादू बना हुआ। ममता ने अपने "खेला होबे" और "बाहरी बनाम भीतरी" जैसे नारों को हथियार बनाकर एक बार फिर अपनी जीत सुनिश्चित कर ली है।टीएमसी की जीत के बाद ममता बनर्जी अब मोदी के खिलाफ विपक्ष का सबसे बड़ा चेहरा बन गईं हैं। उन्होंने अकेले दम पर इस विधानसभा चुनाव में सभी को पछाड़ दिया है। ममता के खिलाफ खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, योगी आदित्यनाथ जैसे सभी बड़े चेहरों ने चुनाव प्रचार किया। सभी ने जमकर ममता पर हमले भी किए, लेकिन दीदी ने हार नहीं मानीं। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि दीदी ने खुद के दम पर सभी को इस चुनावी मैदान में मात दे दी है।

सीएम की हैट्रिक की ओर दीदी

 पश्चिम बंगाल में टीएमसी की जीत का मतलब ये है कि सूबे में दीदी का जादू बरकरार है।इस जीत के बाद अब ममता बनर्जी तीसरी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठेंगी। वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी ने 211 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इस बार भी टीएमसी इस आंकड़ें के आसपास पहुंच गई है। इसका साफ मतलब है कि पश्चिम बंगाल की जनता को दीदी का काम पसंद आया है और जनता ने एक बार फिर दीदी पर अपनी "ममता" बरसाई है‌।

ममता की जीत के कारण 

कोरोना और किसान आंदोलन पर ममता का आक्रामक रुख ममता बनर्जी दिल्ली में नए कृषि कानूनों को लेकर धरना कर रहे किसानों के समर्थन में उतरीं। वहीं बंगाल में जिस वक्त पीएम मोदी समेत भाजपा के तमाम कद्दावर नेता पश्चिम बंगाल में चुनावी प्रचार कर रहे थे, उस दौरान देश में हर तरफ कोरोना महामारी तेजी से फैल रही थी। कोरोना संक्रमण के मरीज बढ़ने पर ममता बनर्जी ने आक्रामक रुख अपनाया। उन्होंने पीएम मोदी और केंद्र सरकार पर जमकर निशाना साधा। टीएमसी की ये जीत इस तरफ भी इशारा करती है कि लोगों में महामारी से ठीक से ना निपटने को लेकर भी भाजपा से नाराजगी है। चुनावी रैलियों में ममता बनर्जी ने आम जनता के मुद्दे को उठाया।

 नंदीग्राम सीट पर लिया रिस्क 

ममता बनर्जी ने रिस्क लेते हुए सिर्फ एक ही सीट यानी नंदीग्राम पर चुनाव लड़ीं। ज्यादातर ऐसा होता है कि बड़े नेता सुरक्षित और दो सीटों से चुनाव लड़ते हैं। खुद लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी ने दो सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन ममता बनर्जी ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने एक ही सीट पर चुनाव लड़ने का फैसला किया। इस सीट पर उनके खिलाफ भाजपा ने पूर्व टीएमसी नेता सुवेंदु अधिकारी को मैदान में उतारा।

चोट को बनाया वोट के लिए हथियार राजनीति में प्रतीकों के बहुत मायने होते है। एक रैली के दौरान जब ममता बनर्जी को चोट लगी, तो इसका आरोप उन्होंने भाजपा पर लगाया। इसके बाद वो इसे राजनीतिक प्रतीक बनाकर चुनावी रैलिया करती रहीं। ममता बनर्जी के पैर में प्लास्टर लगा था और वो व्हील चेयर पर बैठकर हमेशा मैदान में डटीं रहीं। साथ ही वे देश के सबसे पसंदीदी नेता को चुनौती देती रहीं। ऐसे में बंगाल की राजनीति में उनकी पकड़ और मजबूत हो गई।

 


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