12 माह में करोड़ों रुपये की बिक गईं दवाएं, अंत में संतुलित आहार - सकारात्मकता ही काम आई

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कोरोना के चिकित्सकीय प्रोटोकॉल में बड़े बदलाव होने पर डॉक्टर, वैज्ञानिक और शोद्यार्थी काफी आश्चर्यचकित हैं। इनका कहना है कि आज भारत के नए प्रोटोकॉल को देख साक्ष्य आधारित चिकित्सा के पितामह डेविड सैकेट काफी प्रसन्न होंगे।महीनों पहले ही इन दवाओं को विज्ञान जगत ने बेअसर बताया लेकिन फिर भी भारत सरकार के प्रोटोकॉल में ये दवाएं शामिल रहीं।

इसका परिणाम यह था कि 12 महीने में करोड़ों रुपये की दवाएं बाजारों में बिक गईं। वहीं करोड़ों रुपये की कालाबाजारी से दवा कंपनियों को कमाई भी हो गई। विशेषज्ञों का कहना है कि साल भर में करोड़ों रुपये की कालाबाजारी, दवा कंपनियों को मुनाफा और भारत सरकार की समितियों में बैठे प्रतिनिधियों के बेतुके फैसले लेने के बाद अंत में संतुलित आहार और सकारात्मकता पर ही आकर देश खड़ा हो गया।


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