विधानसभा चुनावों में क्या 'मुफ़्त' के वादे दिला पाएंगे वोट?

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पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बीच एक बार फिर 'मुफ़्त' की राजनीति शुरू हो चुकी है. कहीं 'मुफ़्त'' की बिजली का एलान तो कहीं फ़्री में स्कूटी, सिलेंडर से लेकर लैपटॉप तक देने का एलान.

उत्तर प्रदेश से लेकर गोवा तक राजनीतिक पार्टियां लोकलुभावन घोषणाएं कर रही हैं.

इन 'मुफ़्त' की घोषणाओं को जनता के कल्याण के तौर पर पेश किया जा रहा है लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त क्या है? क्या 'मुफ़्त' के ऐसे वादे और इरादे वोट हासिल करने का शॉट कट हैं? ऐसी घोषणाओं से जनता का कितना भला होता है?

मुफ़्त' की सियासत पर सवाल सुप्रीम कोर्ट मे एक जनहित याचिका दायर की गई है.

याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय बीजेपी से जुड़े हैं. उनके मुताबिक़, ''याचिका में दो मांगे की गई हैं. पहली मांग है कि केंद्र को निर्देश दिया जाए कि वो क़ानून लाकर मुफ़्त की घोषणाएं करने वाले राजनीतिक दलों को नियंत्रित करे. दूसरी मांग है कि जो पार्टियां मुफ़्तखोरी का वादा कर रही हैं उनका चुनाव चिह्न रद्द हो''.


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