पुष्पा झुकेगा नहीं', बॉलीवुड से टक्कर में दक्षिण का सिनेमा क्यों बढ़ रहा आगे

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एक ज़माना था जब हिंदी पट्टी के सिनेमाप्रेमी 'मद्रासी पिक्चरों' के बहाने रजनीकांत, कमल हासन या चिरंजीवी को ही जानते थे. कभी-कभार नागार्जुन या वेंकटेश को भी. आज गाँव-गाँव गली-मुहल्लों में प्रभास और अल्लू अर्जुन जैसे सितारों का नाम गूंज रहा है. धनुष, अजित, मोहन बाबू, विजय देवराकोंडा, चिंया विक्रम, खिचा सुदीप, पवन कल्याण, नागा चैतन्य, रामचरण तेजा, जूनियर एनटीआर, सूर्या, समान्था, रश्मिका मन्दाना. आप नाम लेते जाइये, यूपी, बिहार, बंगाल से लेकर एमपी और गुजरात तक इनका जादू चल रहा है. हिंदी सिनेमा में दक्षिण की पैठ हीरोइनों के मामले में वैजयंती माला के ज़माने से रही है, हेमा मालिनी जयाप्रदा, मीनाक्षी शेषाद्रि से लेकर आज श्रुति हासन तक, दक्षिण की अभिनेत्रियाँ हिंदी फ़िल्मों में काम करके मशहूर होती रही हैं, लेकिन यह दौर बिल्कुल अलग है जब दक्षिण के सितारे अपनी ही फ़िल्मों से पूरे देश में चमक रहे हैं. भरपूर मनोरंजन, दर्शकों की नब्ज़ पर पूरी पकड़ और इन सब से बढ़कर पिछले 20 साल से अमल में लाई जा रही सोची-समझी रणनीति जिसने आज बॉलीवुड पर अपना रोब जमा लिया है. बॉलीवुड का किला फ़तह करने के लिए आज साउथ वालों ने अश्वमेध का घोड़ा दौड़ा दिया है. दक्षिण भारतीय सिनेमा के सेनापतियों की पूरी फ़ौज बॉलीवुड में राज करने का सपना साकार करने के बहुत क़रीब है. अब ये मत समझिए कि सिर्फ़ एक 'पुष्पा' के देश भर में फैले तूफान और करोड़ों की कमाई की वजह से ऐसा नतीजा निकाला जा रहा है.
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