छत्तीसगढ़ में पहली बार वनांचल में शुरू हुई संस्कृत की शिक्षा

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सरगुजा: वनों से आच्छादित आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में 1965 में संस्कृत की शिक्षा शुरू कर दी गई थी. यह पहला मौका था जब छत्तीसगढ़ में संस्कृत की शिक्षा शुरू की गई. सामरबार में बने आश्रम में संत गहिरागुरू ने इसकी स्थापना की थी. आज संस्कृत के 10 स्कूल और 2 कॉलेज संचालित हैं. जिनमे करीब 11 सौ बच्चे संस्कृत की शिक्षा ले रहे हैं.

सरगुजा आदिवासी बाहुल्य संभाग है. यहां रहने वाले लोग मांस मदिरा के सेवन में अधिक लिप्त रहते थे. सनातन धर्म की पूजा पद्धति और जीवन शैली से दूर थे. धार्मिक अनुष्ठान के लिये यहां पंडित भी अन्य प्रदेशों से बुलवाये जाते रहे हैं. ऐसे में सरगुजा के एक समाज सुधारक ने संस्कृत के प्रसार का बीड़ा उठाया. संत गहिरा गुरु ने संभाग भर में आश्रम बनाये. संस्कृत स्कूल खोला और लोगों को मांस मदिरा से दूर कर समाज सुधारने का काम किया.

शिक्षकों ने बताया कि "1965 में जब संस्कृत महाविद्यालय खोले तो बनारस के विद्वान लोगों से उन्होंने आग्रह किया और उन लोगों ने आकर यहां विद्या अध्ययन कराया. कैलाश गुफा में कुछ दिक्कतें आने के कारण कुछ दिन के बाद वहां से महाविद्यालय सामरबार में लगाया जाने लगा. 10 संस्कृत स्कूल संचालित हैं. जिनमें 3 हाईस्कूल और 7 मिडिल स्कूल संचालित हैं और 2 संस्कृत के कॉलेज हैं. अपने छत्तीसगढ़ में संस्कृत महाविद्यालय के नाम से कोई भी महाविद्यालय नहीं है. निश्चित ही एक रायपुर में है, लेकिन वहां शास्त्री आचार्य की डिग्री नहीं मिलती वहां संस्कृत एमए, संस्कृत बीए की उपाधि मिलती है. तो काफी समय तक ये छत्तीसगढ़ का इकलौता संस्कृत महाविद्यालय रहा है. अब इसकी संख्या 2 हो गई है. बलरामपुर जिले के श्रीकोट में दूसरा महाविद्यालय अभी अभी खोला गया है."


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